Thursday, November 4, 2010

वजूद

क्या हो गया है तुम्हे ?
आजकल
हर बात पे चिढ जाते हो
ज़रा सा पूछ लो, एकदम से लड़ जाते हो

उसका कहना भी ठीक था
पर उपाय क्या है
इतनी हाय क्यों है

चल तो रही है ना, ज़िन्दगी
क्या संबंधों का रस भी निचोड़ लूं
तो क्या अपने सिद्धांतों  से मुंह मोड़ लूं
अकेले दुनिया में तुम्ही तो नहीं हो


इग्नोर करो
मैं कुछ कह रही हूँ
ज़रा गौर करो

ठीक है...
 तुम्हे ये सब पसंद नहीं
तुम्हारे कुछ उसूल है
यही तुम्हारी भूल है

हाँ .....जानती हूँ
तुम्हे चैन से सोना है

मगर, ये सोचो
भूखे पेट भी तो नींद नहीं आयेगी
अपनी नज़रों में तुम गिरना नहीं चाहते
इसके बगैर भी तो अपाहिज हो

आज खुद से बहुत शर्मिंदा हो तुम
मत भूलो, इसीलिए जिंदा हो तुम

यानि.....
बी प्रक्टिकल के नाम पर
मैं भी वही सब..........

मैंने कब कहा 
तुम भी वही सब करो
बस, इग्नोर करो

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