Sunday, August 22, 2010

                 एक कहानी

बरसों पहले चाँद निगोड़ी, इस धरती पर रहती थी
था सूरज से लफडा उसका, मेरी दादी कहती थी

जब मंगल पर शापिंग करने, चाँद शाम को जाता था
पीछे-पीछे सिटी बजता, सूरज गाना गाता था

गाता था "वो लड़की बहुत याद आती है" 
बाल सुखाने चाँद बेचारी, जब-जब छत पर जाती थी

देख के उसको इलू-इलू, करता कई इशारें
दोनों शाम को डेटिंग,जाते दूर क्षितिज कनारे

कभी कराता टूर शुक्र पे, कभी बुद्ध की सैर
इक दिन नज़र पड़ी कुदरत, नहीं अब उनकी खैर

ख्वाब सजाएँ सपने देखे, किया था कितना वादा
ऐसी नज़र पड़ी जालिम की, मिल न सके वो ज्यादा

कुदरत ने तारों की अचानक, मीटिंग एक  बुलवाई
बोला सूरज बेटा जग में, हो रही बड़ी हंसाई

हम ऊंचे कुल के रजा है ज़रा नज़र दौड़ाओ
मरते हो उस नीच जाती की, लड़की को ठुकराओ

खाया-पिया बहोत हो चूका होश में अब आ जाओ
खानदान की इज्ज़त को, ऐसे तो न लुटवाओ

मिलकर  चाँद से  सूरज ने, सारी बात बताई
दोनों लिपट के इतना रोये, हाय दुहाई-दुहाई

कहा  चाँद ने जाओ सूरज, अब मुझसे न मिलाना
मैं प्रातः जब छुप जाऊं ,किरणों संग निकलना

और सुनो अब याद में मेरी, देखो तुम मत रोना
साड़ी रात जलूं मैं विरहन, तुम चैन से सोना

तब से दोनों अलग हुए जो, कभी नहीं मिल पाए
दास्ताँ सुन इनकी भींगी, पलकें किसे दिखाएँ