Tuesday, August 20, 2013

विकल्पहीनता



कोई और विकल्प 

हो तो  

बताओ ...

नहीं ना !

मेरी मानो

हौंसलें समेटो

रास्ता जो भी हो 

स्वीकार करो 

सपनों को साकार करो

Sunday, August 11, 2013

शहर सपनों का...
 
मासूम
सपने देखने वाली आँखें
वो आँखें
जो सपने देखने के लिए बनी थी
सोने के लिए नहीं
इन्हें क्या मालूम ?
कि
यह शहर
जो हर पल नए-नए
सपनों की आमद से गुलज़ार है
इसके नीचे न जाने
कितने सपने दफ्न है
कितनी लाशें सड़ रही है
ख्वाहिशों की.....
इस शहर की
निर्मम भीड़ में
सपने
कब और कैसे खो जाते है ?
इसकी फरियाद कौन करेगा ?
कहाँ होगी इसकी सुनवाई ?
यह सवाल
बार-बार चौंकाता है
यह ख़याल बार-बार आता  है
और वो
अपनी मुट्ठियाँ बंद कर लेता है
इस डर से
कि सपने उड़ न जाये
मानो
सपने न होकर
जुगनू हो ..........

Monday, July 8, 2013

यूँ ही .................


कुछ चीज़ें 
एक वक़्त  के बाद 
व्यर्थता के ढेर में 
तब्दील हो जाती है 
जैसे ...........
बुढ़ापा