Saturday, October 16, 2010

       मैं गांधी और वो


आखिर कब पीछा छोड़ेगा ये गाँधी ?

यही एक चरित्र था
नाटक में देने के लिए
राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी ?

क्यों आ जाती है आंधी
जब लेता हूँ इसका नाम

सब समझते है
कहीं जानबूझकर छेड़ते  तो नहीं  

उसने समझाया था
क्यों लेते हो इतना 'सीरियस'
एक चरित्र ही तो है
ना बोल दो  

लेकिन... लेकिन ये गाँधी ही क्यों ?
आज तो रफा-दफा करना ही होगा
या मैं या वो गाँधी !

कितना उखड जाता हूँ मैं
ये शब्द सुनते ही
उसे भी भला भूरा बोल देता हूँ

लेकिन ये क्या....?
वो तो जा रही है
इससे पहले की ये गाँधी
हमें भी बाँट दे
;स्क्रिप्ट' फाड़ देना ही ठीक है

आखिर दिया ही क्या है गांधी ने
सिर्फ अलगाव के !

(मैं गाँधी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ . ये लाइने मेरी रचनात्मक आज़ादी के तहत लिखे गए है.)

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