Sunday, April 20, 2014
शहर बनारस
बतलाऊँ
क्या कैसे बीती , कुछ बीत गई कुछ गुज़र गई
उस
दिशा से आयी हवा बता, मेरा शहर बनारस कैसा है
मैं दूर हूँ तेरी नज़रों से , महरूम
हूँ तेरी रहमत से
ऐ
बादल मेरे दोस्त सुना , मेरा शहर बनारस कैसा है
हल्दिया
से गुजरी हल्दी नदी, कह्ते है गंगा ही तो है
गर
ऐसा है तो ऐ लहरें, कुछ बोल बनारस
कैसा है
वो
फक्कडपन वो बेफिक्री, वो किस्सों की जादूनगरी
ऐ काशी के बाशिंदों, लब खोल बनारस कैसा है
कैसी है काशी की
गलियाँ, गलियों में गुम होती गलियाँ
अलहदा कचौड़ी और
जलेबी, का स्वाद बनारस कैसा है
अब तो घाटों को भी
गंगा, माँ ने नहला डाले होंगे
वो पैरों को छूती
लहरों, का भाव बनारस कैसा है
वो श्मशान का
मोक्ष-भाव, लहरों से खेलती छोटी नाव
जीवन दर्शन को
सिखलाती, वो गाँव बनारस कैसा है
वो ममता के लाखो
मंदिर, दर पे झुकते लोगों के सिर
सुख और सुकून की
ठंडी-मीठी, छाँव बनारस कैसा है
जो मज़ा यहाँ की
गलियों में,घाटों की रंगरलियों में
पूछो जो भटके गलियों
में, कि मज़ा बनारस कैसा है
बिस्मिल्लाह जी की
शहनाई, छन्नू जी का अंदाज़-ए-बयां
गुदई महाराज
धिन-धिन-धिन ना, की थाप बनारस कैसा है
वो नुक्कड़ और
दुकानों पे, होती चर्चा और परिचर्चा
कवि लेखक और नेताओं
का, जमाव बनारस कैसा है
कजरी,सोहर,फगुआ
गाना,रतजगा पे जलेबी खाना
सावन के मेले के
ठेलों, की शान बनारस कैसा है
भरतमिलाप नाटीइमली
की, रामलीला रामनगर वाली
वो जश्न वो लोगों का
हुजूम, वो रंग बनारस कैसा है
डी.एल.डब्ल्यू. का
रावण मेला, घाटों पे दीपों की बेला
छठ का उत्सव हो या
खिचड़ी का, स्नान बनारस कैसा है
हो धर्म अलग हो जात
अलग, सब लोगों के जज्बात अलग
तेरी होली मेरी ईदी
, सद्भाव बनारस कैसा है
जिन्हें भूल गया, जो
भूल गया, बंदा माफ़ी के काबिल है
कम शब्दों में कैसे
लिखूं, सब भाव बनारस कैसा है
होता कोई जो शहर, तो
अब तक भूल गया होता शायद
अंदाज़ है ये तो जीने
का, मेरी जान बनारस कैसा है
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